*new year poem*
(फिर से)
फिर से क्या कोई उमीद की किरण जगेगी ?
फिर से क्या मंज़िल सही रास्ते से भागेगी ?
फिर से क्या वो लौट के आयेगी ?
फिर से क्या आ कर वापस
तो नही जायेगी ?
फिर से ये तय नही हुआ है,
मुझे लग रहा है, पिछले साल जैसा नही होगा।
शायद इस साल तो कुछ अच्छा होगा।
फिर से सोचा गया।
फिर से समझा गया।
फिर से सब के सामने कुछ बोला गया।फिर से यही यही सवाल मेरे मन मे उठा।
शायद लग रहा है,पिछले साल जैसा इस साल ये फैसला नही करेंगे।
शायद कोई किसान आत्महत्या तो नही करेंगे।
फिर से उसकी याद आई।
फिर से वो ख्वाबो में आई।
फिर से मेरे दिल मे दस्तक हुई
फिर से नये प्यार की शुरुआत हुई।
शायद लग रहा था,पिछले साल जैसे वो मेरे दिल से नही निकलेगी।
शायद इस साल तो वो बेवफा नही निकलेगी।
फिर से सस्ती वाली दाल घर मे बनेगी।
फिर से कम बिजली में भी लाइट चलेगी।
फिर से मेरी बाइक भी सस्ते पेट्रोल में चलेगी।
शायद लग रहा है, पिछले साल जैसी कोई परेशानी नही रहेगी।
शायद शायद इस साल तो मंहगाई नही रहेगी।
फिर से अपना बंद मुँह खोला गया।
*शायर शुभम*
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